- नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2020 के पांच सालों में 5+3+3+4 करिकुलम, प्री-प्राइमरी शिक्षा और NIPUN भारत अभियान जैसे बड़े सुधार लागू हुए।
- अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट, CUET परीक्षा और विदेशी कैंपस की शुरुआत से शिक्षा प्रणाली में लचीलापन और वैश्विक सहयोग बढ़ा है।
- केंद्र-राज्य विवाद, थ्री लैंगुएज फॉर्मूला पर असहमति और HECI आयोग के गठन में देरी जैसी चुनौतियां अभी भी जारी हैं।
नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) 2020 के पाँच साल पूरे हो गए हैं, जिन्होंने भारतीय शिक्षा प्रणाली में कई जरूरी बदलाव लाने की कोशिश की है। इस नीति की मुख्य बातें और प्रगति को देखेंगे तो पता चलेगा कि शिक्षा क्षेत्र में कितने सुधार हुए हैं, कौन से हिस्से में सुधार आंशिक है और अब भी किन चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है। आज हम NEP 2020 के इन पाँच सालों का पूरा हाल देखेंगे और समझेंगे कि आपकी पढ़ाई पर इसका क्या असर पड़ा है।
NEP 2020 के पांच साल: शिक्षा में हुए मुख्य बदलाव
NEP 2020 ने स्कूल शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कई बड़े सुधार किए हैं। 5+3+3+4 नई संरचना लागू की गई, प्री-प्राइमरी शिक्षा की शुरुआत हुई, साथ ही NIPUN भारत अभियान से बुनियादी शिक्षण में सुधार की दिशा में कदम उठाए गए।
शालेय शिक्षा में नया करिकुलम और प्री-प्राइमरी की शुरुआत
पांच सालों में NEP 2020 के तहत 10+2 संरचना से हटकर 5+3+3+4 प्रणाली को लागू किया गया है। इस ढांचे में फाउंडेशनल स्टेज प्री-प्राइमरी से कक्षा 2 तक, प्रिपरेटरी स्टेज कक्षा 3 से 5 तक, मिडल स्टेज कक्षा 6 से 8 तक, और सेकेंडरी स्टेज कक्षा 9 से 12 तक होती है। 2023 में नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क (NCFSE) तैयार कर कक्षा 1-8 के लिए नए किताबें दी गईं, जिसमें सामाजिक विज्ञान भी एकीकृत विषय के रूप में शामिल है।
प्राथमिक स्तर पर प्री-प्राइमरी शिक्षा को बढ़ावा दिया गया ताकि 2030 तक हर बच्चे को यह सुविधा मिले। NCERT की ‘जादुई पिटारा’ किट और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के ECCE कोर्स ने कई राज्यों में इस क्षेत्र में मदद की है। दिल्ली, कर्नाटक, और केरल ने भी कक्षा 1 के लिए न्यूनतम आयु 6 साल रखी है।
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NIPUN भारत अभियान से आधारभूत शिक्षण में सुधार
2021 में शुरू किया गया NIPUN भारत मिशन कक्षा 3 तक सभी बच्चों के लिए भाषा और गणित की मूलभूत समझ देने का काम कर रहा है। हाल ही में सरकारी सर्वेक्षण के मुताबिक भाषा में औसत 64% और गणित में 60% स्कोर मिला है, जो लक्ष्य से थोड़ा कम है लेकिन शुरुआती चरण को सफलता माना जा रहा है।
अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट और क्रेडिट फ्रेमवर्क की सुविधाएँ
NEP के तहत शैक्षिक क्रेडिट व्यवस्था में बड़ा बदलाव आया है। अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट (ABC) और नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क (NCrF) ने छात्रों को विभिन्न संस्थानों से क्रेडिट लेने और आसानी से कोर्सेज में बदलाव करने का मौका दिया है। इस सुविधा से 1 साल का सर्टिफिकेट, 2 साल का डिप्लोमा और 4 साल की मल्टीडिसिप्लिनरी डिग्री हासिल करना संभव हो गया है। CBSE भी इस मॉडल को पायलट प्रोजेक्ट के तहत स्कूलों में आजमा रहा है।
कॉलेज प्रवेश में एकीकृत परीक्षा CUET का परिचय
विदेशों और भारत में प्रवेश परीक्षाओं के तनाव और भ्रम को खत्म करने के लिए NEP ने एक राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षा की व्यवस्था सुझाई थी। 2022 से CUET के रूप में यह लागू हो चुका है और अब UG courses में प्रवेश के लिए मुख्य परीक्षा के तौर पर काम कर रहा है।
विदेशी कैंपस और वैश्विक सहयोग का विस्तार
भारतीय शिक्षण संस्थान जैसे IIT मद्रास, IIT दिल्ली और IIM अहमदाबाद ने विदेशी कैंपस खोलना शुरू कर दिया है। वहीं विदेशी विश्वविद्यालय जैसे यूनिवर्सिटी ऑफ साउथैम्पटन भी भारत में अपनी शाखा खोल रहे हैं। UGC ने अभी तक 12 अन्य विदेशी विश्वविद्यालयों को अनुमति देने का काम शुरू किया है, जिससे वैश्विक सहयोग और छात्रों को दुनियाभर से मिलने वाले अवसर बढ़ेंगे।
NEP के लागू होने में आंशिक प्रगति वाले क्षेत्र
किसी नीति के लागू होने में कुछ सुधार तो जल्दी होते हैं, कुछ में समय लगता है। बोर्ड परीक्षा परिवर्तन, होलिस्टिक रिपोर्ट कार्ड, मातृभाषा में शिक्षा, और UG डिग्री सुधार जैसे क्षेत्रों में आंशिक प्रगति देखने को मिली है।
CBSE की नई बोर्ड परीक्षा प्रणाली और मूल्यांकन मॉडल
CBSE 2026 से कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षा को साल में दो बार कराने की योजना बना रहा है। कर्नाटक पहले ही इसका सफल परीक्षण कर चुका है। साथ ही PARAKH यूनिट का नया मूल्यांकन मॉडल भी तैयार है, जो न केवल अंकों बल्कि स्वयं मूल्यांकन और सहपाठी मूल्यांकन को भी महत्व देता है। बावजूद इसके, सभी बोर्डों ने यह मॉडल अभी तक पूरी तरह से नहीं अपनाया है।
मातृभाषा में शिक्षा और चार साल की UG डिग्री का विस्तार
NEP के अनुसार कक्षा 5 तक मातृभाषा माध्यम से शिक्षा देना जरूरी है। CBSE ने इसे प्री-प्राइमरी से कक्षा 2 तक लागू किया है, लेकिन बाकी बोर्डों और राज्यों में यह पूरी तरह लागू नहीं हो पाया है। वहीं, चार साल के UG डिग्री सुधार के रूप में कुछ केंद्रीय विश्वविद्यालयों और केरल में लागू किया गया है, लेकिन बाकी संस्थानों में अभी भी इस पर अधूरी तैयारी है।
NEP लागू करने में आ रही चुनौतियाँ और विवाद
NEP 2020 के लागू होने में कुछ विवाद और चुनौतियां आ रही हैं, जिनमें मुख्य रूप से राज्यों का विरोध, नीति में देरी और केंद्र-राज्य के बीच टकराव हैं।
थ्री लैंगुएज फॉर्मूला और शिक्षक शिक्षा नीति से जुड़ी बाधाएं
तमिलनाडु और कुछ अन्य राज्यों ने हिंदी अनिवार्य करने के खिलाफ विरोध जताया है, जिससे थ्री लैंगुएज फॉर्मूला पर विवाद हुआ है। इसके अलावा, 2021 में प्रस्तावित शिक्षक शिक्षा नीति अभी भी पूरी तरह लागू नहीं हो पाई है और देरी हो रही है।
HECI आयोग का गठन और सरकारी योजनाओं में विवाद
UGC की जगह बनाने वाला उच्च शिक्षा आयोग (HECI) अभी भी ड्राफ्ट स्टेज में है। इस आयोग की जिम्मेदारी में फंडिंग, मान्यता और गुणवत्ता नियमन शामिल होगा। अभी इस पर विवाद और अनिश्चितता बनी हुई है। नाश्ते और लंच से जुड़ी सरकारी योजनाओं पर भी विरोध हुआ है।
केंद्र और राज्यों के बीच MoU विवाद और फंडिंग की समस्याएँ
केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने PM-SHRI स्कूल योजना के लिए MoU पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया है, क्योंकि वे NEP के पूर्ण लागू होने से सहमत नहीं हैं। इसके कारण फंडिंग रुकी है, जिससे शिक्षा योजनाओं के लागू होने में दिक्कतें आ रही हैं। तमिलनाडु ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
इस तरह, NEP 2020 ने शिक्षा के क्षेत्र में कई सुधार किए हैं, लेकिन अब भी कई जरूरी मुद्दे हैं जिन पर ध्यान देना ज़रूरी है। अनिश्चितताओं और विवादों के बावजूद, यह नीति भारत के शिक्षा भविष्य को मजबूत बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो रही है।